Thursday, November 9, 2017

अंदाज-ए-ईश्क

   केहेना था जो केह दिया अब कोई खलिश नहीं दील में बाकी, मन को ठेस पहुंचाना , गम में डुब जाना, ये चीजें मेरे फितरत में नहीं आती।
 खूबसूरती की कदर करना अच्छेसे आता है हमे, औरोंके फैसलों की इज्जत करना खुब आता है हमे, बेवजह कीसीपर हक जताना मेरी आदत नहीं, कोई आना चाहे तो आये,  इस जिंदगी में कोई रंजीश नहीं. . .
खुबसूरत था वो मौसम, जहां एक छाता दो दिलों को बारीश में सुलगा राहा था, जहां एक कॉफी ☕ दोनों के बीच दोस्ती बढ़ा रही थी, जहां फीजाए वादियों में गीत गुनगुना रही थी, जहां उचाईयोपर लहराता आंचल होश छीन राहा था, जहां हर एक नगमा मन कहे गीत गाए जा रहा था। मैं वहीं जीता , हा मै वहीं जीता ।

वेद 🍁 

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