Friday, October 27, 2017

गुस्ताख बारीश

फीर वो शाम आयी जीसने सोचने पर मजबूर कर दिया,
फीर वो बात हूई जीसने दिमागमे खलबली मचा दी।
मुलाकातों का सिलसिला खत्म हो गया था, न जाने तभी बरसात कैसे हो गयी।
भीगी हुई सड़कों पर वो दौड़ने लगी थी, आज वो बारीश भी कुछ केहेना चाहती थी। कुछ समझ आये तो बात बनेगी, वरना खाली हाथ ये बरखा जाएगी।
बिखरी हुई वो कलीया जुही की, देख जीसे वो गाना- गुनगुनाने लगी। रूख गयी मेरी नजरे उस पर,
 और कमबख्त ये बारीश मुझे भीगाने लगी थी।
                       वेद 🍁      
                        

एक कदम हुस्न की और...

शाम भी नशेमे झुम उठी, मदहोश हो गया था वो मौसम,
फना हुए थे कई चेहरे, तो थम रही थी कही धड़कनें ।
जिक्र उसका कुछ इस कदर हुआ, मुस्कुराहट थी होठोंपे
और आसु थे निगाहोंमे।
साथ उसका, चाह उसकी कहीं खीच रही थीं बनकर डोर अनदेखी। राह में खड़े होकर सहेज रहे थे उसकेही सपने,
दिल में धडकन थी या उसके नाम की गुंज, जुबां पर लफ्ज़ थे या फिर उसकी तारीफ, खताए कर राहा था
या हो गया था कुछ हासिल, केहर मचा था हर दुसरे रुप से उसके, या छा गये थे खुशी के बादल, बस एक तिरछी नजरसे। फरिश्तोंने हाथोंसे बनायी थी उसकी मुरत, या दील की छन्नी से तराशी गयी थी उसकी सीरत।
फूलों की खुशबूभी फीकी गीरे ऐसी मखमली काया उसकी, वो देखे एक नजर तो पल मे रूख जाये दुनिया मेरी।
वेद 🍁

संवाद दो अधुरे दिलोंका...

आज वो मिलने आयी थी, मेरे साथ चलने आयी थी।
बोहोत वक्त लगाया मुझे खोजने में, ये केहकर चीडारही थी।
कैसे ना खोजता मिलने का वादा जो कीया था तुमसे,
उस रोज बरखा के मौसम में ठीक तुम्हारे घर के सामने हाथोंमे जुही की कलियाँ लिए बैठा था, तुम्हें वो बेहद पसंद थी।  उनकी मेहेक तुम तक पहुंची और तुम कीसी की परवाह किए बगैर दौडी चली आयी।

सब याद है मुझे कुछ भुली नहीं हु,
मैने दौड़कर तुम्हें सीनेसे लगाया था।
अगले ही पल में मैंने खुद को तुमसे अलग कर दिया था।
मुझसे फिर कभी ना मीलना ये केहने तुम्हारे करीब आयी थी। लेकिन देख तुम्हें सामने सब कुछ भुल गयी थी।

आज फीर वो शाम आयी है फीर बादल छाए हैं, बारीश फीरसे अपने गीत गुनगुना रही हैं। उस दिन भी मेरे साथ तुम थी, आज भी हो...
सिर्फ उस समय एक छाता था, आज दोनो भीगे हुए हैं।
वो चाय की गर्म प्याली, वो सर्दी भरा मौसम, वो बारीश और तेरा हाथों को छूकर चलना क्या याद है तुम्हें...

सुनो प्यार में तुम अकेले नहीं थे मै भी नशेमे झुम उठी थी
हर वो चीज जो तुम महसुस कर रहे थे, उन्हें मै भी आजमा रही थी।
फर्क बस इतना है कि मैं आगे बढी और तुम ख्यालोंमे कही खो गये।

बातो में उलझाना कोई तुमसे सीखे,

हा और पत्थर दिल बनना कोई तुमसे सीखे।


वेद 🍁

जब दो बूढ़े जवान होते हैं।

 जब दो बूढे़ जवान होते हैं। जब वो कपकपाते हाथ एक-दूसरे के करीब आते हैं, जब दो साथी खोयी राह के खोज में निकलते हैं, जिंदगी का असली मजा जब व...