कोई चोर केहेता है तो कोई लुटेरा केहेता है, किसीको क्या खबर, वो जमाना चीछोरा भी हो सकता है। छुटता चला जाता है आदमी, और तुम गढ्ढा खोद रहे हो,
जिंदगी कदम नाप रही है कब्र के लिए, कीसीको क्या खबर शायद वहां तुम्हारी बात चल रही हो।
शतरंज के खेल में होते हैं ६४ घर, और तुम एक वझिर लिए बैठे हो...
तुमने मारा हो चाहे वझिर मेरा
मगर मेरे मदमस्त हाथी और घोडेने तुम्हारे राजा को है घेरा, किसीको क्या खबर, वो कही तुम तो नहीं।
अंजाम, नतीजा खेल का कुछ भी हो सकता है, आज यहाँ जीता है तो कल वहापर हारा है, किसीको क्या खबर, शायद खेल भी बड़ा प्यारा है। अक्षरोंका मायाजाल है, या है दुनिया की खुदगर्जी, किसीको क्या खबर, साला बदनाम करने का बहाना भी हो सकता है।
वेद 🍁
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