समन्दर के लेहरोमें फंसी थी एक नाव, मांझी जिसका सखा था उसीने दिया था ये घाव, मजधारेमे धकेला था, नाव का संतुलन बिगाड़ा था, ना सोचा कभी उस दोस्त के लिए, ना जाने उसका हाल क्या हुआ था...
तेज लेहरे और आंधी ने मांझी को था घेरा, फिर सोचा की शायद है शनि का डेरा, तगमग तगमग डोली थी नाव छुटती जा रही थी डोर से नाव, नाम उसने माँ का लिया, तूफान फिर क्रोधित हो बोला, तुम्हारी सजा यही है के तुम डूब जाओ, अक्ल नहीं थी तुममें जो गद्दार को दोस्त समझा...
मांझी बोला जनाब हमने दोस्ती दिल देकर निभाई और उसने दिमागसे दुश्मनी निभाई...
वेद
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